Friday, January 24, 2014

पप्पू के पापा तुहूँ लड़ा

पप्पू के पापा तुहूँ लड़ा
अबकिन चुनाव मा हुअव खड़ा।

निरहू-घुरहू अस कइव जने
सब दावं इलेक्सन मा जीते,
संसद का समझिन समधियान
सब जने देस का लइ बीते ;
न केहू कै वै भला किहिन
न केहू कै कल्यान किहिन,
सीना फुलाय घूमैं जइसे
वै हुवैं सिकंदर जग जीते।

टुटहा घर बनिगा महल अइस,
हैं छापिन नोटव कड़ा-कड़ा।
पप्पू के पापा -------

न काम किहिन न काज किहिन
सोने के भाव अनाज किहिन,
बभनौटन से तुहंका लड़ाय
अपुना दिल्ली मा राज किहिन ;
वै कहिन जाय निपटाउब हम
दुख-दर्द सकल भयवादी कै,
लेकिन सत्ता की गल्ली मा
वै जाय कोढ़ मा खाज किहिन।

खद्दर कै रंग चढ़ा अस की,
होइ गवा करैला नीम चढ़ा ।
पप्पू के पापा ---------

उनकी थइली मा माल भवा
तौ झूर गलुक्का लाल भवा,
मोटर पै बिजुली लाल जरै
हारन जिउ कै जंजाल भवा ;
सब गांव खड़ंजा का तरसै
वै घर तक रोड बनाय लिहिन,
जे तनिकौ मूड़ उठाय दिहिस
ऊ पिपरे कै बैताल भवा ।

केहू गड़ही मा परा मिला,
केहू पै मोटर जाय चढ़ा ।
पप्पू के पापा --------

मँगनी कै धोती पहिर-पहिर
वै नात-बाँत के जात रहीं,
घर मा यक जून जरै चूल्हा
वै भौंरी-भाँटा खात रहीं  ;
अब नेता कै मेहरि बनि के
गहना से लदी-फँदी घूमै,
सोझे मुँह बात न चीत करैं
नखरा नकचढ़ा अमात नहीं।

काने में झुमकी हीरा कै,
नेकुना पै सब्जा बड़ा-बड़ा ।
पप्पू के पापा -------

उनके लरिका कै सुनौ हाल
किरवा झरि जइहैं काने कै,
वकरे चपरहपन के किस्सा से
रंगा रजिस्टर थाने कै ;
बिटिया-पतुअह घर बंद भईं
पहरा लागै डड़वारे पै,
सगरौ पवस्त ऊबा वहसे
चक्कर काटै देवथान्हे कै ।

है गाँव-देस मा अब चर्चा,
इनके पापन कै भरा घड़ा ।
पप्पू के पापा -------

(यह रचना 2009 के चुनाव के आसपास लिखी गई थी)

Saturday, January 18, 2014

बरदेखी मा जूता घिसि डायन

बिटिया ब्याहै का सुख पायन,
बरदेखी म जूता घिसि डायन।

भगवान बहुत दिन तरसाइन,
तौ मलकिन बिटिया का जाइन,
माई कै मन तौ मलिन भवा,
पर आय पड़ोसी समझाइन;
न मन का तनिक हतास करौ,
नाचौ-गावो उल्लास करौ,
गुड़ कै भेली बांटौ गोइयाँ,
तोहरे घर लछिमी हैं आइन।

तौ मन तनिका भै पोढ़ भवा,
सबका बोलाय सोहर गायन।
बरदेखी म जूता --------

खुसियाली मा बरहा कइके,
हम लछिमी नाव धराय दिहन,
जब पढ़ै-लिखै कै उमिरि भई,
एडमीसन जाय कराय दिहन;
ऊ सब काह्यो मा तेज रही,
इंटर मा यूपी टाप किहिस,
जौ डिगरी एम्मे कै लाई,
जानौ हम गांव में टाप किहन।

मुल खुसियाली काफुर होइगै,
जौ बर द्याखै का हम धायन।
बरदेखी म जूता --------

सतुआ-पिसान लै के निकरेन,
पहुंचेन यक दिन सुकुलाही मा,
सुकुलै सतकार किहिन पुरहर,
मुल मिली न सक्कर चाही मा;
लरिका कै बड़ा बखान किहिन,
लै आए गाँव गवाही मा,
फिर पता लाग ऊ व्यस्त अहै,
अपनेन घर की हरवाही मा।

डिगरी बीए कै फर्स्ट किलास,
उनकै सगरिव फर्जी पायन।
बरदेखी म जूता -------

पांड़ेपुर कै घर सही लाग,
बर रहा मुला तनिका नाटा,
जौ ठीकठाक वै बतलाते,
तौ रहा नहीं तनिकौ घाटा;
मुल सात पुस्त पीछे कै वै,
पहिले तौ बतलाइन गाथा,
फिर तीन लाख नगदी के संग,
वै माँगि लिहिन मोटर टाटा।

पांड़े का हम परनाम किहन,
औ सइकिल घर का रपटायन।
बरदेखी म जूता --------

मिलि गए यक जने दूबे जी,
खुद उनके रहीं सात बिटिया,
वहमां से पाँच का ब्याहि चुके,
न छूट बिचार तबौ घटिया;
वै सातौ बिटिया कै कर्जा,
हमहिन से भाटा चहत रहे,
जौ उनसे हम संबंध करित,
न बचत घरे लोटा-टठिया।

दूबे न टस से मस्स भए,
हम केतनौ उनका समझायन।
बरदेखी म जूता ------

दूबे से चार गुना चौबे,
चौबे से आगे रहे मिसिर,
लरिका का धरे तराजू पै,
वै भाव लगावैं घिसिर-घिसिर;
समधी पावै कै आस रही,
मुल मिले हियाँ सब सौदागर,
लंबी दहेज कै लिस्ट देखि,
हम घर कै रिस्ता गयन बिसर।

मोटर-गहना के चक्कर मा,
हम दौरत-दौरत भरि पायन।

(यह कविता 2009 में लिखी गई थी)

अबकी चुनाव हम लड़ि जाबै

तोहरै सपोर्ट चाही ददुआ,
अबकी चुनाव हम लड़ि जाबै।

कीन्हेंन बहुतेरे कै प्रचार,
जय बोलेन सबकी धुआँधार,
दुइ पूड़ी के अहसान तले,
सगरौ दिन कीन्हेंन हम बेगार;
जब तलक नाँहि परि गवा वोट,
नेकुना से घिसि डारिन दुआर,
अब जीति गए तो ई ससुरै,
चीन्हत नाँहीं चेहरा हमार ।

अबकी इनहिन सबके खिलाफ
हम टिकस की खातिर अड़ि जाबै।
तोहरै सपोर्ट चाही---------

छपुवाउब बड़े-बड़े पर्चा,
करबै पुरहर खर्चा-बर्चा,
ददुआ, तनिकौ कमजोर परब,
तौ माँगब तुमहूँ से कर्जा;
चहुँ दिसि होई हमरी चर्चा,
पउबै हम नेता कै दर्जा,
लोगै हमका द्याखै खातिर,
करिहैं दस कारे का हर्जा।

अबकी दिल्ली दरबार म हम,
अपनिउ यक चौकी धरि द्याबै।
तोहरै सपोर्ट चाही---------

मूँठा राखब आपन निसान,
पटकब बिपक्ष का पकरि कान,
करवाय लियब कप्चरिंग बूथ,
बंटवाय दियब सतुवा-पिसान;
अबहीं तक छोलेन घाँस बहुत,
अब राजनीति म भै रुझान,
तौ जीति के ददुआ दम लेबै,
मन ही मन मा हम लिहन ठान।

धोबी कै वोट मिलै खातिर,
गदहौ के पाँयन परि जाबै।
तोहरै सपोर्ट चाही-------

जब पहिर के निकरब संसद मा,
हम उज्जर कुर्ता खादी कै,
कोने म धरा रहि जाए ददुआ
सगरौ नकसा गाँधी कै;
अबकिन चुनाव मा नापि लियब,
जलवा इन सबकी आँधी कै,
यक दिन मा लइ लेबै हिसाब,
हम भारत की बरबादी कै।

मूड़े पै टोपी बदलि-बदलि
हम राजनीति मा जमि जाबै ।
तोहरै सपोर्ट चाही-----

है याक अर्ज तुम सब जन से,
अबकी बिजयी करिहौ मूँठा,
जैसन जीतब ददुआ तुमका,
दिलवौबै सक्कर कै कोटा;
भगवान भगौती सब जन का
चढ़वौबै पूड़ी का जोटा,
तुम सबका सेंक्सन करवौबे,
जहता कै थरिया औ लोटा।

विश्वास करौ हम संसद मा
यक टका दलाली न ल्याबै।
तुम्हरै सपोर्ट --------

(यह कविता 1988 में लिखी गई थी। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए कुछ पंक्तियों में संशोधन किया गया है)




Friday, January 17, 2014

सरकारी अस्पताल

यहु अस्पताल सरकारी है।
यहु अस्पताल ---------

हमहूँ टुटही टँगरी लइके
पहुँचेन जब यक दिन अस्पताल,
सब चले गए स्ट्राइक पै
परि गवा डॉक्टरन का अकाल ;
हैं भली-भाँति निर्वाहि रहे
डॉक्टर अपनी जिम्मेदारी,
यहु अस्पताल है सरकारी
यहु अस्पताल है -------

अगिले हफ्ता हम फिर पहुँचेन
तब मिले डॉक्टर शर्मा जी,
वै कहिन सीरियस है मसला
तुम आओ देखब घर मा जी;
अब समझ म आवा अस्पताल
सरकारी शिष्टाचारी है ।
यहु अस्पताल -------

घर पै वै भारी फीस लिहिन
रुपया नौ सौ चालीस लिहिन,
औ कहिन कि आओ अस्पताल
झट्टै भर्ती होइ जाव काल्ह;
अपरेसन होई अब तुम्हार
टाँगन मा फ्रैक्टर भारी है।
यहु अस्पताल --------

अगिले दिन भर्ती भयन जाय
यक बिस्तर खाली रहै हुआँ,
बगलहिन चाय के होटल से
छनि-छनि के आवत रहै धुआँ;
को कहै चिकित्सक से साहेब
यह तो यक नई बेमारी है।
यहु अस्पताल ----------

भर्ती कइके वै किहिन आय
हमसे अपरेसन कै चर्चा,
धीरे-धीरे समझाय दिहिन
हमका सगरौ खर्चा-बर्चा ;
वै ना जानिन हमरे मूड़े
पै केतनी जिम्मेदारी है।
यहु अस्पताल --------

वै कहिन दवा-दारू तुमका
लावै का परी बजारै से,
ज्यादा न लागे खर्च-बर्च
बस पंद्रह-बीस हजारै से;
अपरेसन तौ हम फिरी करब
पर आगे खुसी तुम्हारी है।
यहु अस्पताल ---------

यतना गंदा है अस्पताल
जइसे झुमरी कै हुवै ताल,
किरवा निकसत हैं खाने मा
है काई जमी पखाने मा;
यक टाँग तौ पहिलेन टूटि रही
अब दुसरेव की तैयारी है।
यहु अस्पताल -------

बिन पइसा के तौ हियाँ कोऊ
यक बूँद दवा पावत नाहीं,
अपरेसन का तरसैं मरीज
घंटन बिजुरी आवत नाही;
औ जंग लगे औजारन से
हियाँ शल्य चिकित्सा जारी है।
यहु अस्पताल सरकारी है ।
यहु अस्पताल --------

(यह कविता 1988 के आसपास लिखी गई थी। डॉक्टर की फीस इत्यादि आज के संदर्भ में संशोधित हैं)